एक था राजा एक प्रजा थी ,
प्रजा पर सदा राजा की कृपा थी।
यूँ राजा से पहले भी प्रजा थी ,
पर भूंखी नंगी वो सदा थी।
था राजा का एक राजकुमार ,
जो था राजा से भी ज्यादा सुकमार।
यूँ वो सदा विदेश ही दौड़ा करता ,
पर कभी कभी जनकल्याण का भी दौरा पड़ता।
फिर जब देख प्रजा को उसे आता तरस ,
लगता जैसे स्वाती नक्षत्र में पड़े बादल बरस।
जब भाव-विभोर हो जाता वो ,
समरसता लाने गरीबो के घर जाता वो।
भूंखी-नंगी खानदानी प्रजा को ,
फिर आकर गले लगाता वो।
खाना खाकर उनके घर में ,
लेकर डकार भूल सब जाता वो।
चेले-चापड़ कलछुल-चमचे ,
जब जय-जयकार मचाते थे।
देख कुँवर की पप्पूगिरी ,
राजा-रानी संग मंत्री हर्षाते थे।
तभी ना जाने कहाँ किधर से ,
एक नया बहुरुपिया देश में आया।
स्वॉँग बनाकर तरह तरह का ,
जनता के दिल को हर्षाया।
बोला ख़तम करेंगे हम ,
राजा-रानी मंत्री-संतरी का भ्रष्टाचार।
फिर बीच सड़क पर चलाएंगे ,
हम जनता की चुनी सरकार।
लोक-लुभावन नारे देकर ,
सदा करते रहेंगे नौटंकी यार।
यूँ जनता तो जनता ही है ,
सदा बनना मूर्ख भाग्य में है।
करे विधाता भी क्या तब ,
जब चूतिया नन्द,चन्द,घोड़ी सब।
अब आगे की क्या कहें कहानी ,
घाल-मेल ज्यों दूध और पानी।
आप-साँप की जोड़ी मिलकर ,
करते है देखो मनमानी।
यही दुआ है देश की खातिर ,
जनता हो जाये थोड़ी सयानी।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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