कौन कहता है क़ि उसे भूँख नहीं लगती ,
रोटी कपड़ा और मकान की ।
जायज या नाजायज प्यार और रिस्तो की ,
उचित या अनुचित धन और सम्पत्ति की ।
पद बैभव और उसके आडम्बर की ,
स्त्री, पुरुष या दोनों के रूप आकर्षण की ।
कभी न्याय तो कभी अन्याय करने की ,
औरो के मुख से अपनी बड़ाई सुनाने की ।
ताकत को अपने मुठ्ठी में रखने की ,
औरो को भेड़ो सा हाँक कर ले चलने की ।
सिद्धांतो का सच्चा अनुगामी दिखने की ,
नियमो को चौखट के बाहर ही रखने की ।
कौन कहता है उसे भूंख नहीं लगती ,
मनुष्यगत स्वभावो की हूँक नहीं उठती ।
परे है वो मानवीय कमजोरियों से ,
और करता नहीं वो दिखावा कभी भी ।
अगर है कोई हमें भी बताओ ,
उस झूँठ के पुलिंदे से हमें भी मिलाओ ।
हमें भी लगाती है कई बार भूँख ये ,
अन्दर हो कुछ पर बाहर दिखे कुछ वो ।
रोटी कपड़ा और मकान की ।
जायज या नाजायज प्यार और रिस्तो की ,
उचित या अनुचित धन और सम्पत्ति की ।
पद बैभव और उसके आडम्बर की ,
स्त्री, पुरुष या दोनों के रूप आकर्षण की ।
कभी न्याय तो कभी अन्याय करने की ,
औरो के मुख से अपनी बड़ाई सुनाने की ।
ताकत को अपने मुठ्ठी में रखने की ,
औरो को भेड़ो सा हाँक कर ले चलने की ।
सिद्धांतो का सच्चा अनुगामी दिखने की ,
नियमो को चौखट के बाहर ही रखने की ।
कौन कहता है उसे भूंख नहीं लगती ,
मनुष्यगत स्वभावो की हूँक नहीं उठती ।
परे है वो मानवीय कमजोरियों से ,
और करता नहीं वो दिखावा कभी भी ।
अगर है कोई हमें भी बताओ ,
उस झूँठ के पुलिंदे से हमें भी मिलाओ ।
हमें भी लगाती है कई बार भूँख ये ,
अन्दर हो कुछ पर बाहर दिखे कुछ वो ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
ऐसा तो कोई इंसान हो ही नहीं सकता जिसे यह भूंख ना हो क्यूंकि यह तो मानव व्यवहार है। जो इसे स्वाकार नहीं सकता वो मजह आडंबर है। सार्थक रचना
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
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