है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।
रूप तेरा मुझे फिर लुभाने लगा ,
मेरे दिल में वो चाहत जगाने लगा ।
एक कंकड़ जो उछाला कही दूर से ,
मेरे मन में वो हलचल मचाने लगा ।
मेरी चाहत में कुछ भी नया है नहीं ,
बस वो बनके मेरी लत छाने लगा ।
जब भी देखूँ मै कोई चेहरा हँसी ,
रात सपनों में तुझको बुलाने लगा ।
है डगर भी वही , फिर से मंजिल वही ।
दिल मे चाहत वही , पग में आहट वही ।
आगे बढ़ कर मै चूमू उन्ही ओंठो को,
हाथो में मै थामूँ उन्ही हाथो को ।
फिर से लौटा मै लाऊ वही बीता कल ,
तुझसे नज़रे मिलाऊ ज्यों हो पहली नजर ।
है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।
रूप तेरा मुझे फिर लुभाने लगा ,
मेरे दिल में वो चाहत जगाने लगा ।
एक कंकड़ जो उछाला कही दूर से ,
मेरे मन में वो हलचल मचाने लगा ।
मेरी चाहत में कुछ भी नया है नहीं ,
बस वो बनके मेरी लत छाने लगा ।
जब भी देखूँ मै कोई चेहरा हँसी ,
रात सपनों में तुझको बुलाने लगा ।
है डगर भी वही , फिर से मंजिल वही ।
दिल मे चाहत वही , पग में आहट वही ।
आगे बढ़ कर मै चूमू उन्ही ओंठो को,
हाथो में मै थामूँ उन्ही हाथो को ।
फिर से लौटा मै लाऊ वही बीता कल ,
तुझसे नज़रे मिलाऊ ज्यों हो पहली नजर ।
है डगर भी वही , है इरादे वही ।
चाह दिल में उठी , फिर से पा लूँ वही ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
Bahut sundar bhai
बहुत बढिया व जोरदार रचना है बधाई स्वीकारें।
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