हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 8 जून 2012

बंधन..

जो बोला तुमने सच ही बोला ,
सच के सिवा कहाँ कुछ बोला ।
क्यों  व्यर्थ मै  उससे आहत होऊ ,
जब तुमने अपने दिल से बोला ।
निश्चय ही हम सब आजाद है ,
इसका मुझको भी एहसास है ।
क्यों व्यर्थ सहे कोई बंधन पराये ,
स्वतंत्रता हम सबका अधिकार है ।

हाँ रिश्तो में यदि अपनापन हो ,
प्रेम समर्पण  सच्चे मन से हो ।
तो प्रेम का बंधन प्यारा लगता ,
सदा जीवन में व्यापकता लाता ।
पर प्रेम का पथ होता है संकरा ,
एक से ज्यादा सदा उसको अखरा । 
वही सफल हो पाया उस पर ,
जिसने त्यागा स्वयं को उस पर ।

यूँ तुम भी थे जिस बंधन में ,
वो प्रेम का ही बंधन था प्रिये ।
मैंने भुला दिया था स्वयं को ,
पर भुला ना पाए तुम स्वयं को ।
इसीलिए तुम्हे चुभता था बंधन ,
आहत करता था जबरन समर्पण ।
तो तुम्हे मुबारक हो आजादी ,
मै देता हूँ तुम्हे सम्पूर्ण आजादी ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Having read this I believed it was rather informative.
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आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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