जो बोला तुमने सच ही बोला ,
सच के सिवा कहाँ कुछ बोला ।
क्यों व्यर्थ मै उससे आहत होऊ ,
जब तुमने अपने दिल से बोला ।
निश्चय ही हम सब आजाद है ,
इसका मुझको भी एहसास है ।
क्यों व्यर्थ सहे कोई बंधन पराये ,
स्वतंत्रता हम सबका अधिकार है ।
हाँ रिश्तो में यदि अपनापन हो ,
प्रेम समर्पण सच्चे मन से हो ।
तो प्रेम का बंधन प्यारा लगता ,
सदा जीवन में व्यापकता लाता ।
पर प्रेम का पथ होता है संकरा ,
एक से ज्यादा सदा उसको अखरा ।
वही सफल हो पाया उस पर ,
जिसने त्यागा स्वयं को उस पर ।
यूँ तुम भी थे जिस बंधन में ,
वो प्रेम का ही बंधन था प्रिये ।
मैंने भुला दिया था स्वयं को ,
पर भुला ना पाए तुम स्वयं को ।
इसीलिए तुम्हे चुभता था बंधन ,
आहत करता था जबरन समर्पण ।
तो तुम्हे मुबारक हो आजादी ,
मै देता हूँ तुम्हे सम्पूर्ण आजादी ।
सच के सिवा कहाँ कुछ बोला ।
क्यों व्यर्थ मै उससे आहत होऊ ,
जब तुमने अपने दिल से बोला ।
निश्चय ही हम सब आजाद है ,
इसका मुझको भी एहसास है ।
क्यों व्यर्थ सहे कोई बंधन पराये ,
स्वतंत्रता हम सबका अधिकार है ।
हाँ रिश्तो में यदि अपनापन हो ,
प्रेम समर्पण सच्चे मन से हो ।
तो प्रेम का बंधन प्यारा लगता ,
सदा जीवन में व्यापकता लाता ।
पर प्रेम का पथ होता है संकरा ,
एक से ज्यादा सदा उसको अखरा ।
वही सफल हो पाया उस पर ,
जिसने त्यागा स्वयं को उस पर ।
यूँ तुम भी थे जिस बंधन में ,
वो प्रेम का ही बंधन था प्रिये ।
मैंने भुला दिया था स्वयं को ,
पर भुला ना पाए तुम स्वयं को ।
इसीलिए तुम्हे चुभता था बंधन ,
आहत करता था जबरन समर्पण ।
तो तुम्हे मुबारक हो आजादी ,
मै देता हूँ तुम्हे सम्पूर्ण आजादी ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
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