हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 7 जून 2012

तुम रखना याद...

समय कहाँ टिकता है कभी, जो रुकता वो अबकी बारी ।
चलना होगा तुम्हे सदा , संग संग करके उससे यारी ।
समय की गति को थाम सके , उसको बाँहों में बांध सके ।
बलशाली नहीं ऐसा कोई , क्षणभंगुर जग में है हर कोई ।
बेहतर है समय के साथ चलें , पछताकर कभी ना हाथ मलें ।
हर क्षण है सुनहरा दरवाजा , आगे बढ़ना हो तो तू आ जा ।

है कर्म के संग ही भाग्य तेरा , देखो ना भटके लक्ष्य कहीं ।
हर कदम सजग होकर रखना , अवसर ना चूके कोई कहीं ।
हर बात समझकर तुम कहना , न उठे प्रश्न उस पर कोई ।
हर कार्य धैर्य से तुम करना , ना हो उसमे नादानी कोई ।
संयत रखना वाणी को , ना तुम्हे कहे अभिमानी कोई ।
हक भले छीनना पड़ जाये , करना नहीं बेईमानी कोई ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Anamikaghatak ने कहा…

karma aur bhagya ka samanway hi jiwan hai

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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