जो अभी तृप्त नहीं हो पाया हो ,
सच्चा प्यार समर्पण पाकर भी ।
वो कभी तृप्त नहीं हो पायेगा ,
सारे जग के प्यार को पाकर भी ।
बंजर भूमि सा उसका जीवन ,
व्यर्थ बरसना उस पर मृदु जल ।
प्यास ना उसकी बुझ पाए कभी ,
ना समझ सके वो क्या होती तृप्ति ।
कभी वक़्त के साथ ना बदले वो ,
ना स्वीकार करे निज त्रुटियों को ही ।
जो तृप्त नहीं हो पाए वो अभागा ,
मूर्ख है वो जो उसके संग लागा ।
सच्चा प्यार समर्पण पाकर भी ।
वो कभी तृप्त नहीं हो पायेगा ,
सारे जग के प्यार को पाकर भी ।
बंजर भूमि सा उसका जीवन ,
व्यर्थ बरसना उस पर मृदु जल ।
प्यास ना उसकी बुझ पाए कभी ,
ना समझ सके वो क्या होती तृप्ति ।
कभी वक़्त के साथ ना बदले वो ,
ना स्वीकार करे निज त्रुटियों को ही ।
जो तृप्त नहीं हो पाए वो अभागा ,
मूर्ख है वो जो उसके संग लागा ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें