पुरानी डायरी के पन्नो से निकली "नये साल १९९८ के स्वागत में लिखी गयी कुछ पंक्तिया" जो शायद आज पुन: २०१४ में मेरे लिए फिर से उतनी ही मायने हो गयी है जितनी आज से १६ साल पहले वो मेरे लिए जवान थी.....
लक्ष्यहीन हो जायें उससे पहले हमें पहुँचना है ,
कर्महीन हो जायें उससे पहले हमें बदलना है।
कांतिहीन हो जायें उससे पहले हमें चमकना है,
भावहीन हो जायें उससे पहले हमें निखरना है।
दयाहीन हो जायें उससे पहले हमें सिसकना है ,
महत्वहीन हो जायें उससे पहले हमें निकलना है।
खण्ड-खण्ड हो जायें उससे पहले हमें सिमटना है ,
प्राणहीन हो जायें उससे पहले हमें सम्भलना है।
हाँ केवल बाते कहने से अब काम नहीं चलना है ,
संकल्पहीन हो जायें उससे पहले कर्म को करना है।
पथहीन हो जायें उससे पहले नयी राह पर चलना है ,
नववर्ष के इन संकल्पो को संकल्पित हो करना है।
आप सभी को नववर्ष की ढेर सारी शुभ कामनाए …।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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