पहले उच्चतम न्यायलय की लखनऊ बेंच में अनावश्यक अडंगेबाजी का प्रयास और वहां असफल होने के बाद अब सर्वोच्च न्यायलय के मध्यम से अनावश्यक अडंगेबाजी ।
कौन हैं वो लोग जो चाहते है कि रोग का निदान ना हो और इस देश में एक नासूर हमेशा हमेशा बना रहे......
क्या ये मीडिया में अनावश्यक प्रचार पाने के लिए लालयित लोग हैं या अपने को जरुरत से ज्यादा समझदार समझने वाले लोग हैं ?
इस देश में सभी को आजादी है मगर इसका अर्थ ये नहीं है कि आप दूसरों की आजादी में जबरदस्ती दखल देने लगें ।
राजनीति , धर्म , समाजसेवा के ठेकेदारों की रोजी रोटी चलने के लिए आवश्यक है कि कोई ना कोई समस्या बनी रहे, और अगर एक समस्या समाप्त हो रही है तो तुरंत दूसरी समस्या उत्पन्न की जाय ।
यहां मूर्ख बनाने और बनने वालों की भी कमी नहीं है ....
मीडिया चैनल समझा रहें है कि ये मंदिर , मस्जिद का फैसला नहीं है , ये तो केवल भूमि के स्वामित्त्व का फैसला है ।
क्या ये इतना ही सीधा है ?
अरे अगर भूमि का स्वामित्त्व उस पक्षकार के तरफ जाता है जो हिन्दू है तो जाहिर सी बात है कि वो कहेगा कि अब ये मेरी जमीन है तो यहाँ मंदिर बनेगा और ये मंदिर वालों की ही जीत है और अगर भूमि स्वामित्त्व उस पक्षकार की तरफ जाता है जो मुस्लिम है तो वो कहेगा कि मेरी जमीन खाली करो यहाँ मेरी मस्जिद बनेगी और ये ममजिद वालों की जीत है ।
तो सीधे सीधे यह मानना चाहिए की अदालत यह निर्धारित करेगी कि वहां क्या बनना चाहिए ।
और जो लोग कहते है कि आपसी बातचीत से मामले को हल करने का समय दिया जाना चाहिए तो वो लोग अब तक कहाँ थे ?
अपने घरों में बैठे अपने बच्चों , नाती , पोतों को गोद में खिलाने में व्यस्त थे अब तक ?
इतने वर्षों से क्या कर रहे थे वो लोग ?
अब अचानक कौन सा सुलह कर लेंगे ?
और जो महानुभाव लोग इसके पैरोकार हैं उनसे ये भी पूंछा जाना चाहिए कि उनके पास सुलह की क्या योजना है ?
उनकी और उनके योजना की देश में स्वीकारिता कितनी है ?
और सत्ता और धर्म के दलालों पर उनकी पकड़ कितनी है ?
मजाक बना दिया है लोगों ने देश में ।
ना खुद कोई फैसला कर सकते है , ना देश के विधान को कोई फैसला करने दे रहे है ?
कोई कह रहा है कि इस फैसले से साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ जायेगा ।
अरे फैसला ना आने से कौन सा बड़ा भाईचारा पनपा जा रहा है । हाँ एक घाव नासूर बनकर अन्दर ही अन्दर टीसता जरुर जा रहा है दोनों सम्प्रदायों में , जो भाईचारे के लिए अनंत तक अवरोध हो सकता है ।
मानव जाति बड़े से बड़े दुःख और क्षति को बर्दास्त कर लेता है फिर चाहे वो उसके किसी अपने के जीवन समाप्त हो जाने का दुःख हो या अपना सर्वस खो देने की क्षति ।
तो क्यों नहीं जो कल होना है उसे आज होने देते है......
जो होना है हो जाने दो , आग लगनी है लग जाने दो , कम से कम जो राख बचेगी उसपर तो नयी इबारत लिखी जा सकेगी ...
और जमाना भी देख और पहचान लेगा कि कौन लोग हैं जो आग लगाने वाले है । जो अपने आप को देश के न्यायालय से ऊपर मानते है , देश के विधान को दर-किनार कर अपनी रोटी सेंकने को तत्पर है ।
अगर हम विकसित हो गए है , समझदार हो गए है , सहनशील हो गएँ है तो जो होनी है और उसे अनंत काल तक नहीं टाल सकते है उसे आज क्यों नहीं होने दे रहे है...क्यों अपने संतानों का जीवन भी अँधेरे के गर्त में धकेलने को तत्पर हैं । जब सभी तथाकथित राजनेता , धर्म गुरु , समाजसेवक और जनता स्वयं से कोई समाधान नहीं खोज पा रही है तो अंतिम विकल्प न्यायालय में अनावश्यक की अडंगेबाजी क्यों की जा रही है ?
और विवादित ढांचा गिरने से ज्यादा बवाल तो अब नहीं ही होगा ये निश्चित है फिर अगर किसी एक की एक उंगली काटकर दो पूरे शरीर बच सकते है तो उसे बचा लेने हेतु आपरेशन करने की अनुमति चिकित्सक को क्यों नहीं दी जा रही है , क्यों नासूर पाल कर पूरा शरीर बर्बाद करने पर हम उतारू हैं ।
तो जो कल होना है उसे आज होने दो ...............जिससे कम से कम आने वाला कल तो सही हो सके ।
"चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में, दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..। जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो, बनकर घटा घनघोर सी,कब कहाँ बरस जाय वो । क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा । ये खुदा ही जानता, या जानता जो साथ होगा ।" ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
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शनिवार, 25 सितंबर 2010
कौन हैं वो लोग जो चाहते है कि रोग का निदान ना हो....?
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आभार..
मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "
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