हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

यहाँ कौन साथ देता है..

यहाँ कौन साथ देता है , जब वक्त बुरा होता है ।
पूंछिये उनसे जाकर , जिन पर ये गुजरता है ।
यार-दोस्त रिश्ते-नाते , संबन्धों की सब बुनियादे ।
केवल तब तक होती हैं , जब करते नहीं तुम फरियादें ।
स्वार्थ पूर्ति ना होता हो , क्यों त्यागमूर्ति वो व्यर्थ बने ।
खाली रिश्तों की खातिर , क्यों अपने को बर्बाद करें ।
जब तक होती है आशा , सम्बन्ध प्रगाढ़ बने रहते ।
फिर खंडहर होते भवनों में , केवल पशु ही रहते ।
जो आज घूमते आगे-पीछे , मिलने को व्याकुल रहते हैं ।
वो तुझसे नहीं तेरी माया से , इतने आकर्षित रहते हैं ।
तुझसे तो केवल तेरी , छाया बंध कर रहती ।
बुरे वक्त में तुमको कब , दुनियां अपना कहती है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक अभिव्यक्ति .

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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