यूँ दूर से देखो नहीं ,
तुम पास आओ कुछ जरा ।
जिंदगी के रूप का ,
आलिंगन कर लो तुम जरा ।
कुछ नहीं यहाँ पाप है ,
कुछ भी नहीं है पुण्य यहाँ ।
भूल कर सब पाप पुण्य ,
गोता लगाओ तुम यहाँ ।
छोड़ दो अब तुम तैरना ,
बहने दो धारा में स्वयं ।
किस डगर ले जाएँ जीवन ,
चुनने दो जीवन को स्वयं ।
जितने ही अवरोधों को ,
तुम बनोगे यहाँ ।
जिंदगी की मुश्किलों को ,
तुम बढाओगे यहाँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
अच्छी रचना.
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