खोखली बातों के संग , जी रहे है लोग सब ।
जो नहीं खुद को पसंद , वो चाहते औरों से हम ।
जो नहीं कर पा रहे , कह रहे शब्दों में हम ।
घट रहा जो भी यहाँ , चलचित्र सा लगता कभी ।
एक ही सुर ताल पर , जब डोलने लगते सभी ।
मर चुकी संवेदनाये , पत्थर के हैं इन्सान ज्यों ।
इंसानियत की चाह में , फिर जी रहें है लोग क्यों ?
हाथ में पत्थर नहीं , पर शब्द पत्थर से ना कम ।
मासूम सा चेहरा मगर , दिल जालिमो से है ना कम ।
जो नहीं कह पा रहे , लिख रहे शब्दों में हम ।
खोखली है जिंदगी , खोखले हो चुके हैं हम ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
मासूम सा चेहरा, मगर दिल जालिमों से है ना कम! वाह साब वाह!
आपका लेआउट और प्रेजेंटेशन चार चाँद लगा देता है कविताओं में।
सहज, सरल भाषाओं में इतनी मार करने वाली बातों के ब्लॉग में अग्रणी है यह।
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