हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 8 सितंबर 2010

खोखली है जिंदगी.......!

खोखली है जिंदगी , खोखले आदर्श सब ।
खोखली बातों के संग , जी रहे है लोग सब ।

जो नहीं खुद को पसंद , वो चाहते औरों से हम ।
जो नहीं कर पा रहे , कह रहे शब्दों में हम ।

घट रहा जो भी यहाँ , चलचित्र सा लगता कभी ।
एक ही सुर ताल पर , जब डोलने लगते सभी ।
मर चुकी संवेदनाये , पत्थर के हैं इन्सान ज्यों ।
इंसानियत की चाह में , फिर जी रहें है लोग क्यों ?

हाथ में पत्थर नहीं , पर शब्द पत्थर से ना कम ।
मासूम सा चेहरा मगर , दिल जालिमो से है ना कम ।
जो नहीं कह पा रहे , लिख रहे शब्दों में हम ।
खोखली है जिंदगी , खोखले हो चुके हैं हम ।
 
 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

मासूम सा चेहरा, मगर दिल जालिमों से है ना कम! वाह साब वाह!
आपका लेआउट और प्रेजेंटेशन चार चाँद लगा देता है कविताओं में।
सहज, सरल भाषाओं में इतनी मार करने वाली बातों के ब्लॉग में अग्रणी है यह।

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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