सावधान ! हे पथिक , तुम लक्ष्य से भटक रहे ।
छोड़ कर तुम राह को , पगडंडियों पर चल रहे ।
दूर है मंजिल तेरी , अनगिनत अवरोध हैं ।
राह में रुकना नहीं , क्या इसका तुमको बोध है ?
तूने किया था प्रण ये , लक्ष्य को पायेगा तू ।
यूँ भटक कर राह में , कैसे पहुँच पायेगा तू ?
सावधान हो पथिक , लक्ष्य अभी अविजित है ।
कर्म से ही संसार का , भाग्य भी सृजित है ।
याद कर तू प्रण अपना , जो पूरा होना है अभी ।
देर है किस बात कि , तुझको सम्भलना है अभी ।
गलतियाँ जो हो गयीं , प्राश्चित उसका भी है ।
गलतियाँ जो हो गयीं , प्राश्चित उसका भी है ।
लक्ष्य से भटका है तू , लक्ष्य जीवित अब भी है ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
prerak prastuti
वाह वाह !
बहुत सुंदर कविता ।
वाह्! बेहतरीन रचना...
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