परिणिति क्या होगी इसका, इतना ज्यादा मंथन क्यों ?
लक्ष्य अगर सुनियोजित है , परिणाम इतर कैसे होगा ।
अहम् बिंदु निर्धारित करना , अपने लक्ष्यों को पहले ।
चुनकर सही मार्गों को , पथ की दूरी को कम करना ।
परिणाम हाथ में ईश्वर के , उस पर करना मंथन क्यों ।
कर्म ही केवल वश में अपने, फिर उससे पीछे हटना क्यों ।
पार करें हम उनको कैसे , यही बारम्बार करो विचार ।
लक्ष्य अगर सुनियोजित है , परिणाम इतर कैसे होगा ।
अहम् बिंदु निर्धारित करना , अपने लक्ष्यों को पहले ।
चुनकर सही मार्गों को , पथ की दूरी को कम करना ।
परिणाम हाथ में ईश्वर के , उस पर करना मंथन क्यों ।
कर्म ही केवल वश में अपने, फिर उससे पीछे हटना क्यों ।
सोंच रहे क्या जग वाले , इससे तुमको लेना क्या ?
क्या सोंचेगे कुछ अपने , इसकी इतनी फिक्र है क्या ?
खाली हाथ ही आये हो , खाली हाथ ही जाओगे ।
अपने पीछे जग वालों को , सोंचो क्या दे जाओगे ।
करो मार्ग पर दृष्टि केन्द्रित , अवरोधों पर करो विचार ।क्या सोंचेगे कुछ अपने , इसकी इतनी फिक्र है क्या ?
खाली हाथ ही आये हो , खाली हाथ ही जाओगे ।
अपने पीछे जग वालों को , सोंचो क्या दे जाओगे ।
पार करें हम उनको कैसे , यही बारम्बार करो विचार ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
रंग बिरंगा आपका ब्लॉग
और लिखने की आपकी अदा
दोनों पसंद आयी.
बढिया.
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