ऐ पथिक तू राह में , है खड़ा किसके लिए ?
कौन है जो आ रहा , तू खड़ा जिसके लिए ?
क्या नहीं तू जानता , हैं मतलबी सब यहाँ ।
अपना काम बनते ही , भूल जाते सब यहाँ ।
साथ है बस उन क्षणो तक , हों पुष्प राहों में जहाँ तक ।
कंटकों को बीन पायें , नहीं साथी यहाँ कोई अभी तक ।।
कौन है जो आ रहा , तू खड़ा जिसके लिए ?
क्या नहीं तू जानता , हैं मतलबी सब यहाँ ।
अपना काम बनते ही , भूल जाते सब यहाँ ।
साथ है बस उन क्षणो तक , हों पुष्प राहों में जहाँ तक ।
कंटकों को बीन पायें , नहीं साथी यहाँ कोई अभी तक ।।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
सामयिक रचना लिखी है। यही है आज की सच्चाई। बढ़िया।
चंद पंक्तियों में बहुत वजनदार बात लिख दी भाई!
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