क्षमा करो 'आजाद' हमें , आजादी हमने अपनी बेंची ।
दुनिया के रखवालों से , हमने अपनी शांति खरीदी ।
भुला दिया पौरुष अपना , बाट जोहते औरों की ।
जिनसे तुमने संघर्ष किया , हम गले लगाते उनको ही ।
आन देश की बेंच कर हमने , शान बढाई है तन की ।
शान देश की बेंच कर हमने , जान बचाई है अपनी ।
भूल गए हम स्वप्नों को , अंतिम समय जो तुमने देखे ।
मिटा दिये सब आदर्शों को , जो तुमने हमको थे भेजे ।
वैश्वीकरण का युग आया , सत्ता में घुस गए दलाल ।
अपनों के सीनों पार ताने , संगीने अपने ही लाल।
परिभाषा भले 'आजाद' हो , अब कहाँ देश आजाद है ?
स्वाधीन था जो पहले , सब पराधीन अब आज है ।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर, स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामना!
एक टिप्पणी भेजें