हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शनिवार, 14 अगस्त 2010

क्षमा करो 'आजाद' हमें

15 अगस्त की पूर्व संध्या पर आजादी के दीवानों को समर्पित

क्षमा करो 'आजाद' हमें , आजादी हमने अपनी बेंची ।
दुनिया के रखवालों से ,   हमने अपनी शांति खरीदी ।

भुला दिया पौरुष अपना , बाट जोहते औरों की ।
जिनसे तुमने संघर्ष किया , हम गले लगाते उनको ही ।

आन देश की बेंच कर हमने , शान बढाई है तन की ।
शान देश की बेंच कर हमने , जान बचाई है अपनी ।

भूल गए हम स्वप्नों को , अंतिम समय जो तुमने देखे ।
मिटा दिये सब आदर्शों को , जो तुमने हमको थे भेजे ।

वैश्वीकरण का युग आया , सत्ता में घुस गए दलाल ।
अपनों के सीनों पार ताने ,  संगीने  अपने ही लाल।

परिभाषा भले 'आजाद' हो , अब कहाँ देश आजाद है ?
स्वाधीन था जो पहले , सब पराधीन अब आज है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर, स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामना!

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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