हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 22 अगस्त 2010

विषाद के क्षणो का कारण

विषाद के क्षणो का, सदा कारण नहीं होता है ।
और ऐसा होना भी, अकारण नहीं होता है ।
ज्यों दूर गगन में कहीं, बादलों से ढ्क गया चाँद हो ।
ओझल हो तारे सभी पर, उन्हें ना इसका गुमान हो ।
कुछ इसी तरह से जब , मन अज्ञात भावों से घिरता है ।
अकारण ही अवसाद का, एहसास मन में भरता है ।
दूर जाना हो अगर , अवसाद के इन बादलों से ।
चीर दो अज्ञात को , ज्ञात के तलवार से ।
तुम नियंता मन के हो , मन को तुम्ही चलाते हो ।
ज्ञात और अज्ञात का , अंतर भी तुम्ही बनाते हो ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Manik Bali ने कहा…

vivek Vicharon ka khulapan website ki banawat dekhkar pata chal jaata hai. website ati uttam hai aur mai nirantar aata rahonga aur tippadiyan karta rahonga.
manik

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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