हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 3 अगस्त 2011

जीवन की परिभाषाएँ...

जीवन की परिभाषाएँ जब , समझ नहीं हमें आती हैं ।
करती हैं बेचैन हमें , मन को विह्वल कर जाती हैं । 
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ अत्यंत सरल सी होती हैं ।
हम वैसा ही फल पाते है , जैसे बीजो को हम बो आते हैं ।
कब देखा हमने जीवन में , काँटों के बीच हो आम लगा ।
बिन बोये खेत में बीजों को , कभी अपने से धान उगा ।
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ बहुत जटिल भी होती हैं ।
अंगारों में तप कर निखरना , फौलाद की किस्मत होती है । 
पर ज्यों ज्यों तपता है सोना , कोमल निर्मल होता जाता है ।
एक ही जैसे तपते दोनों , फिर क्यों उलटा असर हो जाता है
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ अत्यंत ही सुन्दर होती हैं ।
सागर के बदरंग सीप में , सुन्दर मोती की रचना होती है ।
कीचड़ के ही मध्य सदा , खिलते है कमल मुस्काते हुए ।
घटाटोप अँधेरी रातों में ही , दिखते है तारे टिमटिमाते हुए ।
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ बदरंग सी भी होती हैं ।
अपनो को अपने ठगते है , फिर अपनो से गैर बचाते है ।
काँटों के ही मध्य सदा , किसलय गुलाब खिल पाते हैं ।
बिना दंड के मानव भी , स्वयं अनुशासित नहीं रह पाते हैं ।
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ अत्यंत सुरीली होती हैं ।
कोयल की कूक जब आती है , तन मन को हर्षा जाती है ।
अदल बदल कर आते मौसम , मन को सदा लुभाते हैं ।
संतति के हर अरमानो को , माता पिता सदा निभाते हैं ।
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ बहुत ही कर्कश होती हैं ।
कुछ क्षण पहले उत्सव था , क्षण में प्रलय हो जाती है ।
पल में होता जन्म यहाँ , पल में अर्थी सज जाती है ।
रिस्तो में मधुरता आये , उससे पहले डोर टूट जाती है ।
यूँ जीवन की परिभाषाएँ , कुछ अलग अलग सी होती हैं ।
जिसने जैसे कर्म किये , उसको वैसी अक्सर दिखाती है ।
ये कभी लुभाती जीवन को , तो मन को कभी दुखाती है ।
लेकिन हर एक कठिन मोड़ पर , नूतन राह दिखाती है ।
जीवन की परिभाषाएँ जब,  अपना रूप दिखाती हैं ।
मानव को मानव सा , जीने का मार्ग बताती हैं ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

रेखा ने कहा…

जीवन की परिभाषा बहुत ही विस्तार और सटीक ढंग से समझा दिया है ....आभार

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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