पुन: स्वागत है आप सभी का
इस समय मेरी शाम ढल रही है (निशाचर हूँ ना भाई..लंकापति रावण मेरे लकड़-दादा थे ) मगर आधी दुनिया गहन निद्रा में सो रही है...और आधी कुछ घंटों बाद जागने की वाली है , तो मुझे पता नहीं कि इस समय आप सभी से शुभ प्रभात कहूँ या शुभ रात्रि.. ?
खैर होता है छोटे-छोटे और बड़े-बड़े जगहों पर... ठीक वैसे ही जैसे एक बेचारी महिला के चिठ्ठी में हुआ था कभी...
तो आईये एक खुला पत्र पढ़ा जाय और कुछ देर हंसी का आनंद उठाया जाय ....
गांव में एक स्त्री थी । उसके पतिदेव कही बाहर कार्यरत थे ।
वह आपने पती को जब भी पत्र लिखना चाहती थी अल्पशिक्षित होने के कारण उसे यह पता नहीं होता था कि पूर्णविराम(full stop) कहां लगेगा । इसीलिये उसका जहां मन करता था वहीं पूर्ण विराम लगा देती थी ।
कुछ इसी तरह से उसने एक चिट्टी इस प्रकार लिखी--------
मेरे प्यारे जीवनसाथी
मेरे प्यारे जीवनसाथी
मेरा प्रणाम आपके चरणो मे । आप ने अभी तक चिट्टी नहीं लिखी मेरी सहेली कॊ । नौकरी मिल गयी है हमारी गाय को । बछडा दिया है दादाजी ने । शराब की लत लगा ली है मैने । तुमको बहुत खत लिखे पर तुम नहीं आये कुत्ते के बच्चे । भेडीया खा गया दो महीने का राशन । छुट्टी पर आते समय ले आना एक खुबसूरत औरत । मेरी सहेली बन गई है । और इस समय टीवी पर गाना गा रही है हमारी बकरी । बेच दी गयी है तुम्हारी मां । तुमको बहुत याद कर रही है एक पडोसन । हमें बहुत तंग करती है
तुम्हारी मां की । बहू
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अब क्या करे... कई दिनों से टल रहे प्रोग्राम के बाद आज डेल्ही वेळी देख कर आया हूँ तो यही सब पोस्ट लगेगी ना.. वैसे अब पता चला कि आज और हमेशा के मेगा स्टार अमित जी की "बुड्ढा होगा तेरा बाप" जैसी शानदार मूवी.. की बीप..बीप को छोड़कर लोग इसके पीछे क्यों दीवाने है । भाई जब आप खुलेआम लोगो की माँ..बहन की जै-जयकार करने में संकोच नहीं करते है तो पिक्चर हाल में सुनने में क्या बुराई .... आखिर कब तक हिन्दुस्तानी अपने चेहरे और भावनाओ पर नकाब पहन कर चलेगा ?
और आज जब पश्चिम पूरब होने को व्याकुल हो रहा है तो ध्रुवों का सामंजस बनाये रखने के लिए पूरब को भी पूरी तरह कल का पश्चिम बनना ही होगा
तो सभी को हार्दिक बधाईयाँ........
वैसे टी.वी. ओपरा तो पहले से ही व्यस्क हो गया था ... हर दूसरे सीरियल में किसी ना किसी का तीसरे से अफेयर चल रहा है ... और तो और बहू का राज खुले तब तक सास की सास के पुराने रिश्ते वहां खुल जा रहे है और घर तोड़ने की सभी सोलह कलाए वो सिखा ही रहा है तो भारतीय सिनेमा ही क्यों सम-सामयिकता से पीछे रहता..
तो अब किसी के कहे (नाम याद नहीं ) दो लाईनों के साथ एक अल्प विराम ..
"किसी जगह के लिए इंतख़ाब रहने दे ,मैं एक सवाल हूँ मेरा जवाब रहने दे।
मैं जानता हूँ तू लिबास पसंद है लेकिन ,मैं बेनक़ाब सही,बेनक़ाब रहने दे।"
1 टिप्पणी:
It is nice post
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