भटक रहा क्यों मन मेरा , मै जान न पाता हूँ स्वयं ही ।
मन के द्वन्द बढाकर मै , क्यों हर्षित होता हूँ स्वयं ही ।
मै स्वयं ही बनाता भंवरे हूँ , फिर नाव फँसता उसमे मै ।
लाभ हानि की बातो को , फिर व्यर्थ उठता मन में मै ।
खोज रहा उन भावो को , जो मुझको आहत कर जाते है ।
मेरे मर्मस्थल पर जो , अपनी छाप छोड़ कर जाते हैं ।
इसका कोई अर्थ नहीं , वो आहत कितना करके गए ।
क्या मूल में भावो के , क्या वो मुझसे कह के गए ।
मै तो बैठा था पहले से , किसी कारण से कुछ जला-भुना ।जो बही अचानक पुरवाई , फिर आग बढ़ गयी कई गुना ।मै खोज रहा था रेतीले , टीलो पर पिछले पदचिन्हों को ।एक हवा की आहट ने आकर , भुला दिया सब चिन्हों को ।क्या है सच क्या झूँठ यहाँ , मै स्वयं ही जान न पाता हूँ ।मन के इस भटकाव को मै , क्यों रोंक नहीं अभी पाता हूँ ।फिर देता हूँ विस्तार निरंतर , अपने मन के द्वंदों को ।देख रहा हूँ बनते बिगड़ते , अपने ही प्रतिबिम्बों को ।
"चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में, दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..। जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो, बनकर घटा घनघोर सी,कब कहाँ बरस जाय वो । क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा । ये खुदा ही जानता, या जानता जो साथ होगा ।" ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
मेरी डायरी के पन्ने....
हे भगवान,
आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने
ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://www.vmanant.com/?m=1
गुरुवार, 14 जुलाई 2011
द्वन्द..
प्रविष्टिकार :
Vivek Mishrs
प्रविष्टि
गुरुवार, जुलाई 14, 2011
प्रविष्टि वर्ग:
बस तेरे लिये,
मेरी कविताएँ,
राग-रंग
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश
मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1
आभार..
मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण
अनंत अपार असीम आकाश by विवेक मिश्र 'अनंत' is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 3.0 Unported License.
Based on a work at vivekmishra001.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at http://vivekmishra001.blogspot.com.
1 टिप्पणी:
i can understand ur feelings brother.
एक टिप्पणी भेजें