हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 23 जून 2011

तख़्त बदल दो , ताज बदल दो ....

तख़्त बदल दो , ताज बदल दो , 
बेईमानो का राज बदल दो । 
देखो जनता आती है ,
परिवर्तन की आँधी लाती है । 
जन-जन अब हाल बदल दो , 
मिलकर सत्ता की चाल बदल दो । 


जाने कब ये बना था नारा , लेकिन अब भी लगता प्यारा । 
सत्ता पाकर भी जनता को , नहीं किसी ने कभी दुलारा । 
जाने कितने तख़्त बने , जाने कितने इतिहास बुने । 
जाने कितने नेताओं को , अदल बदल कर हमने चुने । 
मगर आज तक जनता का , नही कोई कल्याण हुआ । 
जो भी सत्ता में जाकर बैठा , वो अपने में ही भार हुआ । 
जाने कितने बदले ताज , जाने कितने बदले राज । 
निरीह असहाय जनता का, बनता नहीं है कोई काज । 
भूँखी-नंगी जनता का , उन्होंने भी नहीं हाल सुना ।
बड़े अरमानो से हमने , जिनको  अपना नेता चुना ।
बदल गयी सब मर्यादाएं , भूल गयी पिछली भाषाए ।
केवल सत्ता याद रही , और याद रही उसकी भाषाए ।

भूल सभी जन-संघर्षो को , नेताओं ने बस दुराचार किया । 
जनता की आकंक्षाओ से,खुल्लम-खुल्ला व्यभिचार किया ।
याद रहे नहीं वादे उनको , भूल गए सब नाते उनको ।
बीते थे कुछ एक माह ही , जब सत्ता में जाते उनको ।
सत्ता है कुछ ऐसी ठगनी , मति-भ्रम वो कर देती है ।
अच्छे अच्छो के मन में , लालच वो भर देती है 
फिर भी हमको लगता प्यारा , नारा ये कितना है न्यारा ।
खाकर लाठी-डंडो को भी , जनता ने इसे सदा दुलारा ।
मन में आश जगाता है , कभी मृग-तृष्णा सा बहलाता है ।
आज नहीं तो कल निश्चित ही , बदलेगा हाल बताता है ।
सत्ता सुख का बँटवारा , आखिर जन-जन तक पहुंचेगा ।
आएगा एक दिन वो भी , जब सबका चेहरा चहेंकेगा ।

मत आश करो नेता,बाबाओं का , ये सब चाटुकार हैं सत्ता के ।
तुम स्वयं ही अपने नेता हो , और योग्य भी हो तुम सत्ता के ।
मत देखो तमाशाई बन कर , कल घर तेरा भी जल सकता है ।
हम जैसी बेबस जनता से ही , कोई जन आँधी बन सकता है ।
तो आवो फिर से जोर लगाओ , क्यों बैठे हो तुम भी आ जाओ ।
आओ धरने पर तुम भी आओ , अपना भी दुःख-दर्द सुनाओ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

शिखा कौशिक ने कहा…

तुम स्वयं ही अपने नेता हो , और योग्य भी हो तुम सत्ता के
बिलकुल सही लिखा है विवेक जी हम सभी स्वयं नेता हैं .आभार .

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति...

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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