हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 29 जून 2011

हाथ की लकीरों में क्या लिखा है कौन जानता है?

प्रिये मित्रो एवं वरिष्ठ आदरणीय जन

आज मेरे एक बहुत ही अजीज मित्र और भाई गोविन्द ने मुझे अपनी लिखी एक रचना पढने के लिए भेजी जिसे कई बार पढने के बाद उनकी जबरदस्ती अनुमति प्राप्त करके अपने ब्लाग पर लगा रहा हूँ ताकि आप लोगो को भी उनने हुनर से वाकिफ कराया जाय...

तो आपके समक्ष प्रस्तुत है ....


हाथ की लकीरों में क्या लिखा है कौन जानता है?

तुम हमें मिलोगे,
अपना बनाओगे , हर पल
मेरा साथ निभाओगे, या
यादों के सहारे जिंदगी गुजर जाएगी,
कौन जानता है?

पेड़ से पत्तों की तरह,
बिखर जाती हैं खुशियाँ,
बस साख लिए खड़े हैं तपती धूप में,
इस पतझड़ के बाद बसंत आएगा
या नहीं, कौन जानता है?

उगा था एक पौधा,
कुछ हसरत लिए,
जुल्म सहता हुआ
खड़ा है वो, वो पेड़ बन पायेगा
या टूट जायेगा,
कौन जानता है?

जो सपने सजाये थे हमने,
तुम्हारे साथ दुनिया बसायेगे ,
सपने सच होंगे, या
एक अधुरा ख्वाब बन के रह जायेगे,
कौन जानता है?

संवर जाती जिंदगी हमारी,
तुम्हे भी दे सकूँ खुशियाँ सारी,
हासिल होगी कामयाबी,
या खुद लिखनी पड़ेगी
अपनी बरबादियों की कहानी,
कौन जानता है?\

जिंदगी में लोग आये,
सबसे हमने दिल लगाये,
उनकी तरह तुम भी छोड़ जाओगे,
या हमारी हाल पे मुस्कुराओगे,
कौन जानता है?

जीवन पे काली घटा छाई है,
सारी फिजा अँधेरे के
आगोश में समाई है,
इन अंधेरों में खो जायेगे हम,
या सुनहरा सवेरा होगा,
कौन जानता है?

जीवन के साथ खेल खेलती हैं ये लकीरें,
कभी सुख कभी दुःख देती हैं,
हर पल रंग बदलती हैं ये लकीरें,
क्या होगा अगले पल में,
कौन जानता है?

हाथ की लकीरों में क्या लिखा है कौन जानता है?

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★ गोविन्द पाण्डे ★彡

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वाह वाह,,,,,,,,,,

बहुत कुछ कह दिया और बड़ी बारीकी से कह दिया आपने

अच्छी कविता ...न केवल भावपूर्ण बल्कि अर्थपूर्ण भी...जय हो !

Vivek Mishrs ने कहा…

निश्चित ही यह एक बेहतरीन और लाजबाब रचना है गोविन्द भाई...
जो न केवल सब कुछ कह जाती है वरन बहुत से सवाल भी उठती है...
और अगर इस पर भी भाई आप अपने को रचनाकार नहीं समझते तो मै कहूँगा की आप अपने अन्दर छुपे हुए हीरे को तराशना नहीं चाहते है..
आपका आभार कि आपने अपने दिल से निकले शब्दों को ब्लाग पर लगाने कि अनुमति दी

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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