आधी रात बुलाया तुमने ,
नींद से मुझे जगाया तुमने ।
मुझको मेरे स्वप्नों से ,
जबरन अलग कराया तुमने ।
नींद से मुझे जगाया तुमने ।
मुझको मेरे स्वप्नों से ,
जबरन अलग कराया तुमने ।
जाम बनाया तुमने और ,
फिर अपने पास बिठाया क्यों ।
चाँद छिपा है बादल में ,
मुझको ये दिखलाया क्यों ।
कुछ बातें थी जो अंजानी ,
वो राज मुझे बताया क्यों ।
आधी रात मुझे सजाकर ,
दूल्हे सा बैठाया क्यों ।
अब तो असली वजह बता दो ,
अहसान करो मुझ पर थोड़ा ।
आज जिबह का दिन तो नहीं ,
मुझको लगता है डर थोड़ा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
4 टिप्पणियां:
डर कर जिए तो क्या जिए ... सुन्दर रचना .
सुन्दर प्रस्तुति..
एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट हम भारतीय है भारतीय कहलायेगे ....
ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |
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