हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

एतबार..

तुम जो अक्सर ही ताना कसते हो, झगड़ते हुए मुझसे ।
या कभी प्यार से, फिर उन्ही सवालो को उठा देते हो..।

क्यूँ नहीं मुझको हो पता पूरा एतबार, अब भी तुम पर...?
पर कभी सोंचा है तुमने यही, मेरी जगह खुद को रखकर ?

लो आज बताये देता हूँ तुम्हे खुले दिल से दिलबर,
मै खाली शब्दों पर एतबार नहीं कर पाता अक्सर ।

खाली शब्दों को मै कोरा कागज कहता हूँ आदतन अनपढ़ ।
हाव-भाव जज्बातों की भाषा ही मै समझ पाता हूँ अक्सर...।

तो तुम्हारा सवाल भी अपनी जगह जायज है अब भी ।
और हमारे भरोसे का अंदाज भी वैसा ही है अब अभी ।

क्या करो तुम भी मजबूर हो अपनी आदत से दिलबर ।
हम भी मजबूर है अपनी चाहत की अदा से अक्सर ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG  

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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