तुम जो अक्सर ही ताना कसते हो, झगड़ते हुए मुझसे ।
या कभी प्यार से, फिर उन्ही सवालो को उठा देते हो..।
या कभी प्यार से, फिर उन्ही सवालो को उठा देते हो..।
क्यूँ नहीं मुझको हो पता पूरा एतबार, अब भी तुम पर...?
पर कभी सोंचा है तुमने यही, मेरी जगह खुद को रखकर ?
लो आज बताये देता हूँ तुम्हे खुले दिल से दिलबर,
मै खाली शब्दों पर एतबार नहीं कर पाता अक्सर ।
मै खाली शब्दों पर एतबार नहीं कर पाता अक्सर ।
खाली शब्दों को मै कोरा कागज कहता हूँ आदतन अनपढ़ ।
हाव-भाव जज्बातों की भाषा ही मै समझ पाता हूँ अक्सर...।
तो तुम्हारा सवाल भी अपनी जगह जायज है अब भी ।
तो तुम्हारा सवाल भी अपनी जगह जायज है अब भी ।
और हमारे भरोसे का अंदाज भी वैसा ही है अब अभी ।
क्या करो तुम भी मजबूर हो अपनी आदत से दिलबर ।
हम भी मजबूर है अपनी चाहत की अदा से अक्सर ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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