हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शनिवार, 11 सितंबर 2010

हैरत है..!

मित्रों ईद, गणेश चतुर्थी एवं तीज की आप सभी को शुभकामनाये.....

हैरत है देखकर , कितना भीरु समाज है ।
धर्म के नाम पर , लड़ रहा वो आज है ।
तुम भले कहो इसे , ये नयी बात नहीं ।
धर्म है अगर कई , संघर्ष नयी बात नहीं ।
आस्थाएं है अलग , हैं अलग सबके जुडाव ।
हम सही है वो गलत , बस यहीं होता टकराव ।
हर किसी को प्यारी है, विचारधारा अपने मन की।
भावनाएं सबकी प्रबल, जो गुलाम है उनके मन की।
हस्तक्षेप किसी गैर का , कब सहा मन ने कभी ।
अपमान सह ले तन भले, मन नहीं सह पाता कभी।
जब विरोधी कर रहे, बिध्वंस हो निज धर्म का ।
कैसे देंखे मौन हो , अपमान कोई धर्म का ।
हैरत है देखकर , सोंच जनमानस की ये ।
धर्म के नाम पर , बरगलाया जाता है ये ।
जानवर के रूप में , इनके पुरखे थे कभी ।
मस्तिष्क का विकास कर , मनुष्य थे बने कभी ।
तन भले अलग हुआ , मन नहीं विकसित अभी ।
एक ही श्रस्टा यहाँ , पर लड़ रहे हम सभी ।

भूल कर उस धर्म को, जो मूल था सबका कभी।
अपने अहम् की तुष्टि को, कर रहे पूरा सभी।
हाँके जाते आज भी , भेड़ सा हम सभी ।
भूल कर सदभाव को , मूर्ख हैं बनते सभी ।
ढो रहे है आज भी , कूड़े कचड़े को सभी ।
रुक गया है आज क्या, मस्तिष्क का विकास भी।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

भई विवेक जी अच्छा लिखा है आपने

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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