ऐ स्वप्न लोक में रहने वालों , कुछ देर हकीकत भी जी लो ।
आदर्शों की बातें करते हो , कुछ अंश स्वयं भी तुम जी लो ।
कोरी कोरी बातों से , जग का हुआ कल्याण कहाँ ?
बिना हकीकत में उतरे , सच का हुआ निर्माण कहाँ ?
जो माप-दंड तुम रचते हो , वो तुम पर कब लागू होंगे ?
जो बात स्वप्न में कहते हो , वो कहो हकीकत कब होंगे ?
आदर्शों की बातें करते हो , कुछ अंश स्वयं भी तुम जी लो ।
कोरी कोरी बातों से , जग का हुआ कल्याण कहाँ ?
बिना हकीकत में उतरे , सच का हुआ निर्माण कहाँ ?
जो माप-दंड तुम रचते हो , वो तुम पर कब लागू होंगे ?
जो बात स्वप्न में कहते हो , वो कहो हकीकत कब होंगे ?
यूँ तो इस जग में जाने , कितने लोग हैं तुमसे रहते ।
औरों को नित प्रवचन देते , स्वयं दुर्जन के दुर्जन रहते ।
बस कोरे-कोरे आदर्शो का , हम जैसों को पाठ पढ़ाते ।
चन्दन टीका लगाके वो , नित बहुरंगी पाखंड रचाते ।
खून चूसते इस जग का , परजीवी सा जीवन जीते जाते ।
अपनी करनी लीला कहते , औरों का व्याभिचार बतलाते ।
हम भी स्वप्न लोक में प्राय: , विचरण करने जाते हैं ।
परन्तु हकीकत की परछाहीं , सदा संग ले जाते हैं ।
जब पाप कर रहे होते है , तब स्वयं को पापी कहते हैं ।
जब पुण्य कर रहे होते हैं , तब साधू सा हम रहते हैं ।
पाखंड नही रचाते है , ना पाखंड सहन कर पाते हैं ।
आदर्श वही अपनाते हैं , जिसे जीवन में जी पाते हैं ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
बहुत बढिया कविता
बधाई
नमस्कार........ आपकी कविता मन को छु गयी......
मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
हर पँक्ति मे सुन्दर सन्देश छुपा है। बधाई।
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