जब चाँद छिप गया बादल में , उसे ओंट की पड़ी जरुरत ।
मन के भाव छिपाने को , शब्दों की मुझे पड़ी जरुरत ।
अभी ओंट है शब्दों की , शब्दों का मै बाजीगर ।
शब्दों के अर्थ बदलने में , मै हूँ पूरा जादूगर ।
मन के भाव छिपाने को , शब्दों की मुझे पड़ी जरुरत ।
शायद शब्दों में कह कर , कुछ अपनी लाज छुपा पाऊ ।
यूँ चाँद का सम्बल लेकर , कुछ रिश्तों को मै बचा पाऊ ।
आँखों से यदि बात किया , वो सच सबसे कह डालेंगी ।
मेरे अंतरमन के भावों का , वो पूरा वर्णन कर डालेंगी ।
शब्दों के अर्थ बदलने में , मै हूँ पूरा जादूगर ।
आधा सच और आधा झूंठ , ना पूरा सच ना पूरा झूंठ ।
क्या है सच क्या है झूंठ , ना सच जाने ना जाने झूंठ ।
शब्दों का भ्रम जाल सदा से , बचने की देता है छुट ।
लाज बचाकर रिश्तों की , उनको रखता सदा अटूट ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
शब्दो की ओट लेकर बहुत गहरी बात कह गये आप
बधाई बेहतरीन रचना के लिए
प्रिय बंधुवर विवेक मिश्र जी
नमस्कार !
बहुत ख़ूबसूरत है आपका ब्लॉग ! अच्छी सज-धज के साथ तस्वीरों और संगीत का सम्मिश्रण बहुत मनमोहक है … वाह वाऽऽह !
… और प्रस्तुत रचना भी बढ़िया है । पिछली पोस्ट्स में और भी प्रभावशाली कविताएं हैं ।
तमाम रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रिय बंधुवर
स्वागत है आपका
नमस्कार !
जितना प्यारा मेरा ब्लाग लगा आपको
उससे ज्यादा प्यारा आपका संबोधन लगा मुझे
सीधा दिल से निकला और दिल में उतर गया ...
आपका अपना ही ..
विवेक
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