हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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सोमवार, 3 जनवरी 2011

चंद नन्द और चूतिया की घोड़ी..

मित्रो
नव-वर्ष २०११ की आप सभी को शुभ-कामनाये,
आशा करता हूँ कि यह वर्ष सभी को ज्यादा सुख , ज्यादा कमाई (सफ़ेद और काली दोनों मलाई ) का अवसर देगा ,
जो किन्ही भी कारणों से नही खा पा रहे हो सफ़ेद के संग काली मलाई , उन्हें अवश्य सर्वजन हित में संसद से गैर-भ्रष्टाचार  कानून पास कराकर उठा ले जाय सी.बी.आई.........!!

खैर मुद्दे पर आता हूँ...
वर्षों पहले जब कुछ काल-पात्र-स्थान मुझको दुखित कर रहे थे तो उन्ही परिस्थित जन्य कारणों से उपजे आवेग में उक्त पंक्तिया मेरी डायरी के पन्नो में संकलित हुयी थी , और उस समय की अपनी ज्यादा लपलपाती जिह्वा से मैंने इसका बहुत बार प्रसार कर काफी तारीफे भी बटोरी थीं (अपने जैसे ही प्रताणित जनो से), शायद इसी कारण से ये पंक्तिया बार बार मेरे मानस पटल छाई रहती हैं ।
पर जब मैंने ब्लॉग लिखने का फैसला किया तो सबसे पहले मुझे सलाह दिया गया कि ब्लॉग पर कुछ भी लिखना मगर चंद नन्द और घोड़ी या उसके जैसा और कुछ मत लिखना... और मैंने भी उक्त सलाह को गाँठ बांध कर रख ली थी... मगर देश-समाज-धर्म-राजनीति और रोजी-रोटी से जुड़े हालात को देखते देखते ना जाने कब और कैसे वो गाँठ कहीं चुपके से खुल गयी...
तो अंतत: आज आपके समक्ष ब्लाग पर भी प्रस्तुत है... "चंद नन्द और चूतिया की घोड़ी जनाब"
वैसे आपको सजग कर दूँ कि "चूतिया" शब्द हमारे लखनऊ में सामान्यतया मूर्खों के लिए प्रयोग किया जाता है  पर जिस जगह पर रहकर मै ब्लाग अपडेट कर रहा हूँ वहां के लोग इसका मनमाना संधि-विच्छेद कर के इसे गाली में गिनते है .. अब आप चाहे जो समझे एक चूतिया की घोड़ी के हाथो तीर कमान से निकल रहा है.......तो आप मेरे तीर पर अपनी नजरे इनायत कीजिये.....

चंद लोग चूतिया होते है ,
उनसे आगे चूतिया-नन्द भी होते है ,
और जब-जब ऐसे चंद चूतिया ,
या फिर उनके नन्द चूतिया ,
तलवे चाटकर या किस्मत से ,
भूले भटके सत्ता में होते है ,
तो फिर चारो तरफ जहाँ तक ,  
उनकी भूंखी-नंगी दृष्टि पसरती है ,
और फिर जिनकी किस्मत के ,
वो बन जाते है भाग्य विधाता ,
वो सब जन आखिर मजबूरन या ,
स्वयं अपनी इच्छा से जुटते है ,
जब जब उनके रथ के आगे ,
तो फिर हाल देखकर उनका ,
जग देता है उन्हें एक ख़िताब ,
है अगर चूतिया स्वामी तेरा ,
तो फिर क्यों ना हुए आप
चूतिया की घोड़ी जनाब ।।
 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

ठाकुर पद्म सिंह ने कहा…

वाह वाह ! क्या खूब कही...
इसी पर तुरंती अर्ज है ...

चंद चूतिया होते हैं
चंद चूतिया नन्द
खुल्ले घूमें कई तो
चंद जेल में बंद
नए साल पर छीन लो
इन सब के आनंद
हे मुरली वाले सुनो
हे प्रभु आनंद कंद

shikha kaushik ने कहा…

bhai is shabd ko baar baar prayog kar jin logo ka dhayan aakarshit karna chah rahe hain vo to sari janta ka yahi bana rahe hain .

Deepak Saini ने कहा…

मजा आ गया
वाह

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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