पाप क्या और पुण्यं क्या , दोनों नदी के हैं किनारे ।
बीच में बहती है धारा , छूती सदा दोनों किनारे ।
बहु विविध हैं रंग उनके , बहु-विविध उनकी विधाये ।
चन्द्रमा की ही तरह , है बदलती उनकी कलाये ।
कल जिसे थे पाप कहते , आज कहलाता है पुण्यं ।कल था जिसका मान कुछ , आज कहलाता है शून्य ।
है अगर तुमको जरूरत , जाकर खोजो उनका मूल ।पाकर तुम हैरान होगे , एक ही है दोनों का मूल ।
है अगर अंतर कोई , वो सोंच की केवल दिशाए ।
एक पूरब है अगर , दूसरी पश्चिम कहाये ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
2 टिप्पणियां:
बहुत सटीक और सुन्दर..आप को सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
नव वर्ष की शुभकामनायें|
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