जीवन संघर्षो की बनी दुधारी , लगते घाव हैं बारी बारी ।
जायें किधर समझ ना आये ,आगे कुआँ और पीछे खाई ।
एक तरफ आदर्शो का अब , कटु कोरापन हो रहा प्रगट ।
ठोस धरातल था कल तक , दलदल बन वो रहा विकट ।
परीलोक की गल्प कथाएं , प्रेतलोक का भय दिखलाये ।
कलियों पर मंडराते भौरे , दूर दूर तक नजर ना आयें ।
ठकुरसुहाती सुनने वाले , सोहर सुन कर भी मुस्काए ।
आवारो सा भटके जीवन , कोई सहारा नजर ना आये ।
इनकी टोपी उनके सर , मंत्र भी देखो काम ना आये ।
नजर घुमाओ जिस भी ओर , हाहाकार नजर में आये ।
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