हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://www.vmanant.com/?m=1

सोमवार, 23 जनवरी 2012

परिणाम ?

परिणाम का फैसला , भविष्य पर छोड़ दो ।
क्या सही क्या गलत , इतिहास को लिखने दो ।
रखो नजर लक्ष्य पर , डिगे ना मार्ग से कदम ।
काट कर फेंक दे , हर अवरोध जो रोके कदम ।
साम-दाम दण्ड-भेद , हर अस्त्र को मोड़ दो ।
शत्रु के दिलो में गहरे , अपना भय छोड़ दो ।

चाल सदा शत्रु की , सीखते तुम रहो ।
शत्रु दल में हितैषी , खोजते सदा रहो ।
याद रहे हर एक पल , हैं बदलते विकल्प ।
पहचान कर  उपयुक्त , शक्ति से भरो संकल्प ।
ठोकरों की सोच कर , चाल ना मद्धिम करो ।
आवेग में कोई कदम , गलत ना तुम धरो ।


सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

रेखा ने कहा…

अनुकरणीय और प्रेरक रचना ...

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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