हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 1 जनवरी 2012

पाप क्या और पुण्यं क्या...


पाप क्या और पुण्यं क्या , दोनों नदी के हैं किनारे ।
बीच में बहती है धारा , छूती सदा दोनों किनारे ।
बहु विविध हैं रंग उनके , बहु-विविध उनकी विधाये ।
चन्द्रमा की ही तरह , है बदलती उनकी कलाये ।
कल जिसे थे पाप कहते , आज कहलाता है पुण्यं ।
कल था जिसका मान कुछ , आज कहलाता है शून्य ।
है अगर तुमको जरूरत , जाकर खोजो उनका मूल ।
पाकर तुम हैरान होगे , एक ही है दोनों का मूल ।
है अगर अंतर कोई , वो सोंच की केवल दिशाए ।
एक पूरब है अगर , दूसरी पश्चिम कहाये ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सटीक और सुन्दर..आप को सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
नव वर्ष की शुभकामनायें|

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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