चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं पाता हूँ ।
शायद मन के भावों को , मै पहचान नहीं पाता हूँ ।
बचपन से लेकर अपनी, मै युवावस्था तक आता हूँ ।
धर्म कर्म से लेकर अपनी , कूटनीति तक जाता हूँ ।
मन के भावों को लेकिन , मै शब्द नहीं दे पाता हूँ ।
शायद मन के भाव अभी , परिपूर्ण नहीं हो पाये है ।
या फिर शायद भाव अभी, परिपक्व नहीं हो पाये है ।
जो भी हो लेकिन लिखने को, शब्द नहीं मै पाता हूँ ।
आखिर मैंने सोंचा कि, इस व्यथा को ही लिख डालूं ।
व्यथा को ही यूँ लिखकर अपनी, रचना मै रच डालूं ।
चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं दे पाता हूँ ।
व्यथा को ही यूँ लिखकर अपनी, रचना मै रच डालूं ।
चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं दे पाता हूँ ।
भटक रहे मन को अपने, संयमित नहीं कर पाता हूँ ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
बड़ी उहापोह सी स्थिति ....अच्छी अभिव्यक्ति
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