हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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बुधवार, 18 अगस्त 2010

एक स्वप्न

सोते सोते रात अचानक , जाग गया मै सपने में । 
देखा तो चहुँ- ओर घिरा था , कुहरा बहुत भयानक ।

दूर कहीं पर भौंक रहे थे , कुछ उल्लू पेड़ पर शायद ?
गरज रही थी कहीं निकट ही ,एक बिल्ली शेर पे शायद ?
इतने में चूहा आ धमका , बड़े जोर से फिर वो बमका ।
मच गई भगदड़ चारो और , भागे सब जन मांद  की और ।

मै भी चौंका बड़े जोर से , जंगल में मै पहुंचा कैसे ?
मै तो अपने घर में था , फिर नींद चल कर आया कैसे ?
चारो तरफ है फैला जंगल , होगा मचा शहर में दंगल ।
ढूंड रहे होंगे सब मुझको , कौन बचाएगा अब उनको ।


लभी भूँख मुझे तभी जोर की , खा गया कच्चा मै कई हाथी ।
हाहाकार मचा जंगल में , रोने लगे बचे हुए साथी ।
भूँख मिटी जब मेरी थोड़ी , नींद आ गयी मुझे जोर की ।
सो गया मै फिर वही अकेला , जंगल में था मेरा बसेरा ।

तभी हिलाया मुझे किसी ने , जाग गया मै अपनी नींद से ।
टूट गया फिर स्वप्न अधूरा , घर में था मै अपने पूरा ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Vishal Mishra ने कहा…

बहुत ही बढ़िया सपना देखा भाई! बच्चों के लिए सुंदर सी कविता बन गया।

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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