हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 17 अगस्त 2010

झूंठ के पाँव नहीं होते

सच कहना आसान नहीं ,
सच सुनना और भी मुश्किल है ।

आग जलाना अगर कठिन ,
उस पर चलाना मुश्किल है ।

आसान अगर ना सच कहना ,
है कठिन सदा उसपर टिकाना ।

सच का सहारा लिए बिना ,
है कठिन झूंठ साबित करना ।

झूंठ के पाँव नहीं होते ,
वो चलता सच के पावों पर ।

सच चाहे हो लाचार भले ,
वो चलता अपने पावों पर ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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