हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 24 अगस्त 2010

तुम त्याग के मारों क्या जानो.....

1.
तुम त्याग के मारों क्या जानो, भोग भी एक तपस्या है ?
लो   सुनो   तुम्हे  बतलाता हूँ  ,  भोग  भी  एक  तपस्या  है ।
तप   का अर्थ है तपना   , बाहर भीतर दोनों ही ।
भोग का अर्थ है जुड़ना , बाहर भीतर दोनों ही।।

2.
क्या बिन भोगे तुम तप पाये हो, या तपे बिना हम भोग सकें है ?
जितना   ज्यादा   तुम   भोगे   हो ,  उतना  ही हम तप कर आयें है ।
तप के कोख से भोग है जन्मा , भोग के कोख से तप है जन्मा ।
तप-तप  कर  तुम भोगी हो गए , हम भोग-भोग कर योगी हो गए।।

3.
इसी लिए तुम्हे समझाता हूँ ,  ये प्रकृति  का रहस्य बताता हूँ ।
बिना भोग के योग नहीं है, और बिना योग के भोग नहीं है ।
जब भोग सकोगे जग को तुम ,   तब   पाओगे   तप   को तुम ।
जब तप जाओगे सच में तुम , तब भोग सकोगे जग को तुम।। 

4.
तुम   योग के मारों क्या जाने  ,  त्याग ही एक तपस्या है ?
हम भोग में रहकर जान गए , त्याग भी केवल भोग ही है ।
ये माया और बैराग्य की बातें, बंद करो कुछ  पल को तुम ।
आओ  तुम्हे बताता हूँ ,  कुछ भोग की कोख से जन्मी बातें।।

5.
है जग का नियम अटल पर कटु , जो कुछ पाये हो लौटोगे ।
पर क्या जग में है कुछ ऐसा भी, जो बिन पाये ही लौटाओगे ?
जब भरा रहेगा सब कुछ तेरा , जो चाहोगे त्याग सकोगे
यदि  खाली हाथ ही जाओगे ,  कुछ भी पाओगे ले आओगे

6.
मै इसी लिए समझाता हूँ , 'शिव-शंकर'  का रहस्य बताता हूँ ।
जो भोगी हैंआधे योगी है ,  जो योगी हैं, आधे भोगी है ।।
जो समझ सके ना अब भी तुम , योग - भोग के अंतरतम को ।
ना भोग सकोगे जग को ही, ना त्याग सकोगे जग को तुम ।

7.
ना बन पाओगे योगी ही , ना बन पाओगे भोगी ही ।
बस बन कर त्रिंकुश के जैसे ,  रह जाओगे ढोंगी ही ।
तो आओ दो पल तुम समझो, इस त्याग-भोग के सामंजस को ।
फिर सोंचो क्या बनना है ? केवल आधा या पूरा योगी,भोगी।।

 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

Vishal Mishra ने कहा…

तुम त्याग के मारों क्या जानों भोग भी एक तपस्या है। बहुत खूब लिखे हैं मिश्र जी। मजा आ गया। बहुत ही प्रतिभाशाली ब्लॉग से अनजान थे हम आज तक।

Deepak Saini ने कहा…

बहुत अच्छे मिश्र जी, त्याग और भोग का बेहतरीन वर्णन किया है

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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