धरती प्यासी, नदिया प्यासी , प्यासा सारा अम्बर है ।
तन प्यासा है , मन प्यासा है , प्यासा सारा जीवन है ।
प्यास लगे जब धरती को तो , नदियाँ उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब नदियों को तो , अम्बर उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब अम्बर को तो , सागर उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब सागर को तो , उसकी प्यास को कौन बुझाये ?
तन प्यासा है , मन प्यासा है , प्यासा सारा जीवन है ।
प्यास लगे जब धरती को तो , नदियाँ उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब नदियों को तो , अम्बर उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब अम्बर को तो , सागर उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब सागर को तो , उसकी प्यास को कौन बुझाये ?
प्यास लगे जब जीवन को , तन है उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब तन को भी , मन है उसकी प्यास बुझाये ।
प्यास लगे जब मन को , उसकी प्यास को कौन बुझाये ?
सोंच रहा हूँ कैसे बुझे अब , प्यास लगी जो सागर को ।
सोंच रहा हूँ कैसे बुझे अब , प्यास लगी जो मेरे मन को ।
शायद कोई आकर बुझाये , अपने प्रेम की गागर से ।
प्रेम की गागर से जो छलकी , अमृत की दो चार भी बूंदे ।
पीकर तृप्त हो जायेगा , मन मेरा और सागर भी ।
तो आओ खोजे हम उसको , जिसके पास है प्रेम की गागर ।
चाहे उसकी खातिर हमको , बनना पड़े स्वयं प्रेम का सागर ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
सुन्दर प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
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