तन प्यासा है मन प्यासा है ,
जीवन को पाने की आशा है ।
अब तक जो कुछ पाया है ,
वो प्यास ना मेरी मिटा सका है ।
केवल अधरों को गीला कर ,
मेरी आस को ही बस जगा सका ।
अब चाह रहा मै वो अमृत ,
जो जीवन को मेरे तृप्त करा दे ।
मुझको मेरी अभिलाषा से ,
जीवन भर को मुक्त करा दे ।
प्यास बुझा कर तन मन की ,
मुझको मेरी दिशा दिखा दे ।
वर्ना जब तक मन प्यासा है ,
तन को प्यासा रहना ही है ।
या जब तक तन प्यासा है ,
मन में आनी नयी अभिलाषा है ।
यूँ जब तक तन मन प्यासा है ,
फिर जीवन पाने की आशा है ।
अब चाह रहा मै वो अमृत ,
जो कण्ठ को मेरे तृप्त करा दे ।
तन मन की मेरी प्यास बुझाकर ,
जीवन भर को मुक्त करा दे ।
श्याम रंग में मुझे डुबोकर ,
अब तो मेरे ईश्वर से मुझे मिला दे ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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