जीवन में कभी कभी , कुछ पल ऐसे आते है ।
जहाँ हम प्रायः: अपनी , मर्यादाओ को भूल जाते है ।
और भुलाकर मर्यादाओ को , जो कुछ भी हम करते है ।
आज नहीं तो कल हम , कही न कही उसकी भरपाई करते है ।
और अगर हमको कभी , होता नहीं गलती का एहसास ।
तो किसी अपने के दिल पर , निश्चित होता है बज्रपात ।
तो
अब भी है समय , संभल जा ओ राहगीर ।
फिर ने नए भरोसे को , बना तू आस-पास ।
वो गलतिया तुम्हारी , जो तुमने की थी कभी ।
गर हो सके मानो , तुम जाकर उसके पास ।
जिसको लगी थी चोट , मूर्खता से त्तुम्हारी ।
शायद इसी तरह से , फिर बने नया विशवास ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें