हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 5 मई 2013

अब भी है समय...

जीवन में कभी कभी , कुछ पल ऐसे आते है ।
जहाँ हम प्रायः: अपनी , मर्यादाओ को भूल जाते है ।
और भुलाकर मर्यादाओ को , जो कुछ भी हम करते है ।
आज नहीं तो कल हम , कही न कही उसकी भरपाई करते है ।
और अगर हमको कभी , होता नहीं गलती का एहसास ।
तो किसी अपने के दिल पर , निश्चित होता है बज्रपात ।

तो 

अब भी है समय , संभल जा ओ राहगीर ।
फिर ने नए भरोसे को , बना तू आस-पास ।
वो गलतिया तुम्हारी , जो तुमने की थी कभी ।
गर हो सके मानो , तुम जाकर उसके पास ।
जिसको लगी थी चोट , मूर्खता से त्तुम्हारी ।
शायद इसी तरह से , फिर बने नया विशवास ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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