परवाह नहीं जिनको मेरी , क्यों उनकी परवाह करू ।रार ठानते है जो मुझसे , मै क्यों उनसे प्यार करू ।रिश्ते नाते प्यार वफ़ा , सब बाते है अपनेपन की ।अहंकार है व्यर्थ यहाँ , बात है फिर भी गैरत की ।एक हाथ से कब बजती , ताली कहो कभी जग में ।कैसे चल पाओगे तुम , यदि कांटे चुभे हो पग में ।
सब्र की भी सीमाए है , सीमाओ की भी सीमाए है ।परवाह नहीं यदि तुमको , तो मेरी भी सीमाए है ।भावो का भवसागर है , उसके पार है सबको जाना ।अपना पराया कोई नहीं , खाली हाथ है सबको जाना ।परवाह करू कब तक उनकी , जिनको है परवाह नहीं ।मानव हूँ मै भी इस जग का , समझो मुझको देव नहीं ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
बहुत सटीक भावभिव्यक्ति ...
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