हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

परवाह नहीं...

परवाह नहीं जिनको मेरी , क्यों उनकी परवाह करू ।
रार ठानते है जो मुझसे , मै क्यों उनसे प्यार करू ।
रिश्ते नाते प्यार वफ़ा , सब बाते है अपनेपन की ।
अहंकार है व्यर्थ यहाँ , बात है फिर भी गैरत की ।
एक हाथ से कब बजती , ताली कहो कभी जग में ।
कैसे चल पाओगे तुम , यदि कांटे चुभे हो पग में ।

सब्र की भी सीमाए है , सीमाओ की भी सीमाए है ।
परवाह नहीं यदि तुमको , तो मेरी भी सीमाए है ।
भावो का भवसागर है , उसके पार है सबको जाना ।
अपना पराया कोई नहीं , खाली हाथ है सबको जाना ।
परवाह करू कब तक उनकी , जिनको है परवाह नहीं ।
मानव हूँ मै भी इस जग का , समझो मुझको देव नहीं ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत सटीक भावभिव्यक्ति ...

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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