एक बहुत पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ,
प्रियजनो से अनुरोध है कृपया इसे मेरे आज के सन्दर्भ में ना देखे अन्यथा अर्थ का अनर्थ होना ही है..
एहसास नहीं है तुम्हे अभी , क्या तुमने मेरे साथ किया ।
धोखा देकर मेरे दिल को , कितना मुझको आहत किया ।
तड़फाया है तुमने मुझको , ज्यो पानी के बाहर हो मीन ।
सम्बन्धो की बुनियाद हिली , पैरो तले है नहीं जमीन ।
आसन नहीं है रिश्ते जोड़ना , मुश्किल उसे चलाना है ।
आहत करके अपनो को , अति मुश्किल उन्हें मनाना है ।
फिर तुमने कैसे मान लिया , तुमको यूँ ही माफ़ करूँगा ।
भूल सभी घटनावों को , मै फिर से प्रेम की बात करूँगा ।
सुलग रहा यदि दिल मेरा , तुम भी चैन ना पाओगे ।
अपने अपराध के बोझ तले , घुट-घुट कर जी पाओगे ।
हंसी खुशी तुम रातों को , चैन से ना सो पाओगे ।
धोखा दिया है तुमने मुझे , भूल कभी ना पाओगे ।
आसन नहीं बात समझाना , जाने बिना क्या बीती है ।
अपनी भूल को ओरो के सर , मढ़ना जग की रीति है ।
मै तड़फ रहा जिस तरह आज , ये तड़फ जान ना पाओगे ।
मेरे दिल को समझे बिना , बस यूँ ही अधिकार जमाओगे ।
है कितनी गहरी चोट लगी , ये कभी जान ना पाओगे ।
गैरो के जैसे ही कभी बस , तुम भी मुझको समझाओगे ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
3 टिप्पणियां:
jo aapke sath itna bura kare usko aise hi hona chahiye
Ha.ha.haaa Kaha to aapane ekdam sahi..Bhai govind
Parantu kabhi kabhi isaka karan vo hota hi jisaka bura bhi nahi chaha ja sakta hi.
Jaise Aap hi..
Aaj kisi ne dil toda to humko jaise dhyaan aaya,
jiska dil humne toda tha wo jane kaisa hoga..
Hello bhai kaise ho..? aapakee prem kavita bahut rochak lagi. (Ehsas naheen hai tumhen) Aise hee parat dar parat jeevan ki kahani kahate jaaiye, Gaur se sun rahe hain.
Aapaka Vishal Mishra
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