खोल रहा हूँ पुन: सभी , मै बंद हो चुके द्वारों को ।
घर आँगन से लेकर , दिल के बंद किवाड़ो को ।
बहुत दिनों तक बंद रहे , ये छोटे अभिमानो में ।
आज खोलता हूँ मै इनको , बिना किसी बहाने के ।
चरर मरर कर रहे है देखो , खुलते हुए कपाट सभी ।
निश्चित ही वो तुम्हे बुलाते , आने को इस पर अभी ।
नया सबेरा नयी धूप को , पाने में मै डूब गया ।तंग हो चुकी दुनिया से , मै स्वयं ही चलकर दूर हुआ ।अगर भरोसा हो कुछ तुमको , स्वयं ही चलकर आ जाओ ।
खुले द्वार पर बिछे हुए इन , पुष्पों को ना तुम मुरझाओ ।
जब खोल दिए है द्वार सभी , कुछ तो मै बदला ही होऊंगा ।
केवल दिखावा करने को क्यों , मै इतना उद्धत अब होऊंगा ।टूट रही थी सांसे मेरी , इन सील बंद कपाटो में ।भटक रहा था मन मेरा , तेरे किये सवालों में ।मिला नहीं मुझे उत्तर कोई , भटक कर देखो चूर हुआ ।मिटा सभी अभिमानो को , अपमानो से मै दूर हुआ ।लो खोल दिए है द्वार सभी , स्वागत है अब फिर तेरा ।जिसे आना हो वो आ जाए , जो भी बनाना चाहे मेरा ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
1 टिप्पणी:
बहुत खूब ... सुन्दर रचना के लिए बधाई ...
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