हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 19 फ़रवरी 2012

खोल रहा हूँ पुन: सभी..

खोल रहा हूँ पुन: सभी , मै बंद हो चुके द्वारों को ।
घर आँगन से लेकर , दिल के बंद किवाड़ो को ।
बहुत दिनों तक बंद रहे , ये छोटे अभिमानो में ।
आज खोलता हूँ मै इनको , बिना किसी बहाने के ।
चरर मरर  कर रहे है देखो , खुलते हुए कपाट सभी ।
निश्चित ही वो तुम्हे बुलाते , आने को इस पर अभी ।
नया सबेरा नयी धूप को , पाने में मै डूब गया ।
तंग हो चुकी दुनिया से , मै स्वयं ही चलकर दूर हुआ ।
अगर भरोसा हो कुछ तुमको , स्वयं ही चलकर आ जाओ ।
खुले द्वार पर बिछे हुए इन , पुष्पों को ना तुम मुरझाओ ।
जब खोल दिए है द्वार सभी , कुछ तो मै बदला ही होऊंगा ।
केवल दिखावा करने को क्यों , मै इतना उद्धत अब होऊंगा ।
टूट रही थी सांसे मेरी , इन सील बंद कपाटो में ।
भटक रहा था मन मेरा , तेरे किये सवालों में ।
मिला नहीं मुझे उत्तर कोई , भटक कर देखो चूर हुआ ।
मिटा सभी अभिमानो को , अपमानो से मै दूर हुआ ।
लो खोल दिए है द्वार सभी , स्वागत है अब फिर तेरा ।
जिसे आना हो वो आ जाए , जो भी बनाना चाहे मेरा ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... सुन्दर रचना के लिए बधाई ...

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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