बचपन से मुझे अपनो के प्रति , अतिशय प्रेम लगाव था ।
आदरभाव और अपनेपन का , अतिशय मुझमे भाव था ।नाना-नानी , दादा-दादी , चाचा-चाची, मासी और मामा ।जब भी मिलता मै उनसे , मिलकर हो जाता था गामा ।गाँव की गलिया , खेत के मेंड , खलिहानो की पगडण्डी ।आम के बाग मे खेला करते , गर्मी की होती जब छुट्टी ।
जितना ही अपनो के प्रति , रहता था मेरे मन मे प्यार ।उससे ज्यदा ही मै पाता , अपने लिये अपनो से प्यार ।ननिहाल से जब वापस जाता , या ददिहाल से वापस आता ।सब लोग भेजने आते थे , जब भी उनसे दूर कहीं मै जाता ।
गाँव की सीमा तक सब आते , फ़िर करके विदा खडे रह जाते ।मै भी दूर तक उन्हे ताकता , पलट-पलट कर देखता जाता ।
जब तक दिखते नाना-नानी , उनके लिये तडपता जाता ।जैसे दिखना होते बन्द , दादा-दादी की याद मै पाता ।यूँ ही दादा-दादी को भी , कुछ दूर राह मे रखता याद ।वो जैसे नजर से होते दूर , भूल मै जाता उनकी याद ।कहते थे सारे ही मुझको , इसे प्यार जहाँ तक नजर गया ।ज्यो ही नजर हटी सब भूला , और माया मोह से दूर गया ।
सुनकर मुझको बुरा था लगता , मै था अपने दिल का सच्चा ।कहता मै सब लोग गलत है , मै तो हूँ एक प्यारा सा बच्चा ।फ़िर ज्यों ज्यों होता गया बडा, स्वयं ही बात समझ मे आया ।प्यार असीमित है अपनो से, पर माया मोह से ना बँध पाया ।अब भी मेरा हाल वही है, मन मे चाहत का अम्बार मै पाता ।मगर नजर से हुआ जो दूर, वो दिल के कोनो मे छिप जाता ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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