हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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रविवार, 7 अगस्त 2011

क्यों बात घुमाते हो यारा..

जो बात है कहनी कह दो तुम , क्यों बात घुमाते हो यारा ।
जो बात जुबां पर मचल रही , क्या है वो कोई अफसाना ।
कुछ खास है शायद कहने को , बेचैन हो रहा तेरा चेहरा ।
ठण्ड से कांपती शाम में भी , क्यों लाल हो रहा है चेहरा ।
धड़क रहा है दिल तेरा जो , पहुँच रही है मुझ तक गूँज ।
कह दो जो कुछ कहना है , शब्दों को क्यों करते महरूम ।

यूँ जितना ज्यादा सोंचोगे , तुम उसमे उलझते जाओगे ।
मन की बातो में उलझे तो , तो दिल की ना कह पाओगे ।
दिल की बात सुनी जो ज्यादा ,  मन की ना कर पाओगे ।
जो बात हो कहने आये तुम ,  बात ना तुम कह पाओगे ।
समझ रहा हूँ तेरी व्यग्रता , पर क्यों हो तुम यूँ संशय में ।
किस बात के कारण जुबां तेरी , लरज रही सच कहने में ।

अब तो मै भी आतुर हूँ , है लगी फड़कने आँख मेरी ।
तेरे मन की सुनने को , व्याकुल है अब साँस मेरी ।
अच्छा-ख़राब है जो भी , सुनने को मै व्याकुल हूँ ।
तेरी व्यग्रता कम करने को , दोस्त मेरे मै आतुर हूँ ।
कह दो बिना भूमिका के , बात जो तुमको कहना है ।
मेरे दिल के मंदिर में , निश्चिन्त रहो तुम्हे रहना है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.

संजय भास्‍कर ने कहा…

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुंदर।

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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