जो बात है कहनी कह दो तुम , क्यों बात घुमाते हो यारा ।
जो बात जुबां पर मचल रही , क्या है वो कोई अफसाना ।
कुछ खास है शायद कहने को , बेचैन हो रहा तेरा चेहरा ।
ठण्ड से कांपती शाम में भी , क्यों लाल हो रहा है चेहरा ।
धड़क रहा है दिल तेरा जो , पहुँच रही है मुझ तक गूँज ।
कह दो जो कुछ कहना है , शब्दों को क्यों करते महरूम ।
यूँ जितना ज्यादा सोंचोगे , तुम उसमे उलझते जाओगे ।
मन की बातो में उलझे तो , तो दिल की ना कह पाओगे ।
दिल की बात सुनी जो ज्यादा , मन की ना कर पाओगे ।
जो बात हो कहने आये तुम , बात ना तुम कह पाओगे ।
समझ रहा हूँ तेरी व्यग्रता , पर क्यों हो तुम यूँ संशय में ।
किस बात के कारण जुबां तेरी , लरज रही सच कहने में ।
अब तो मै भी आतुर हूँ , है लगी फड़कने आँख मेरी ।
तेरे मन की सुनने को , व्याकुल है अब साँस मेरी ।
अच्छा-ख़राब है जो भी , सुनने को मै व्याकुल हूँ ।
तेरी व्यग्रता कम करने को , दोस्त मेरे मै आतुर हूँ ।
कह दो बिना भूमिका के , बात जो तुमको कहना है ।
मेरे दिल के मंदिर में , निश्चिन्त रहो तुम्हे रहना है ।
3 टिप्पणियां:
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये
बहुत सुंदर।
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