हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

एक अकेला...

एक अकेला कम मत अंको , एक ही सब पर भारी है ।
अच्छा हो या बुरा हमेशा , आती उसकी बारी है ।
एक कुल्हाड़ी काफी है , हर शाख को काट गिराने को ।
एक ही चिंगारी काफी है , जंगल में आग लगाने को ।
एक ही जयद्रथ काफी था , अभिमन्यू के घिर जाने को ।
एक ही बिभीषण काफी है , हर घर का भेद बताने को ।
एक ही जयचंद काफी है , गैरों की सत्ता लाने को ।
एक ही कायर काफी है , हर जीत को हार बनाने को ।
एक ही उल्लू काफी है , हर बाग उजाड़ बनाने को ।
एक अनाड़ी काफी है , हर खेल में हार दिलाने को
एक की कीमत को मत पूंछो, एक सब पर भारी है ।
अच्छा हो या बुरा हमेशा , आती उसकी बारी है ।
एक राम ही काफी हैं , असुरों से मुक्ति दिलाने को ।
एक बुद्ध ही काफी है , जग में शांति फ़ैलाने को ।
एक बीर ही काफी है, दुश्मन पर विजय दिलाने को ।
एक धीर ही काफी है , संकट को दूर भागने को ।
एक मशाल ही काफी है , जंगल में राह दिखने को ।
एक ही नाविक काफी है , मझधार पार लगाने को ।
एक सूर्य ही काफी है , अँधियारा दूर भगाने को ।
एक चन्द्रमा काफी है ,धवल चाँदनी फ़ैलाने को ।
एक की कीमत कम मत आँको , एक सभी की दुलारी है ।
दो आँखों के बीच अकेली , नाक सभी को प्यारी है ।
एक-एक मिलकर आपस में , ग्यारह बनकर रहते है ।
बिना एक के लाखों भी , सदा खाली-खाली दिखते हैं ।
एक अंक निज शुभता से ,उपहारों का है मान बढ़ता ।
एक अगर कम रह जाये , मान सभी का है घट जाता ।
एक एक पल मिलकर जैसे , करते है युग का निर्माण ।
एक-एक बूंद मिलकर वैसे , भरते सागर नदिया ताल ।
एक अकेले पेट की खातिर , सारा जग श्रम करता है ।
एक अकेली प्रभु सत्ता को , मेरा मन नमन करता है ।।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…


बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - बूझो तो जाने - ठंड बढ़ी या ग़रीबी - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा

Girish Kumar Billore ने कहा…

बहुत उम्दा परंतु ब्लाग खुलने में अधिक समय लगता है..
पोस्ट पर चिंतन योग्य बिंदू मिले

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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