हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

शब्द-बाण


अब व्यर्थ है करना अफ़सोस , संधान हो चुके शब्द-बाणों का ।
लक्ष्य पर वो निकल पड़े , नहीं उन पर अधिकार कमानों का ।
शब्द भेदी बाणों से , होता है घायल केवल तन ।
जब शब्द ही बाण बन जाये , कैसे बच पाये मन ।

तन के घायल होने पर , रक्त की धारा बहती है ।
मन घायल होता है जब , अश्रु की नदियाँ बहतीं हैं ।
तन के घाव तो भर जाते , औषधि का लेप लगाने से ।
पर मन के घाव भरें कैसे , तन पर औषधि लगाने से ।

जुड़ जाते हैं टूटे रिश्ते , गाँठ मगर रह जाती है ।
भर जाते हों घाव भले , टीस मगर रह जाती है ।
तो सोंच समझ कर बोलो तुम , कुछ भी कहने के पहले ।
पछताना पड़े जिस बात को कहकर , रुक जाओ उसके पहले ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बिलकुल सही बात कही है ...अच्छी रचना

Kailash Sharma ने कहा…

शब्दों को बोलने से पहले सोचना बहुत आवश्यक है, वर्ना बाद में अफ़सोस करने से भी कुछ नहीं होता...सुन्दर प्रस्तुति..

Vivek Mishrs ने कहा…

संगीता जी एवं आदरणीय कैलाश जी आपको पोस्ट अच्छी लगी , आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छी लगी आपकी रचना.

Vivek Mishrs ने कहा…

आभार..
संगीता स्वरुप जी
http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/20-304.html
...शुक्रिया
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य – मंच 20(चर्चा-मंच-304)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

एक बार यहाँ भी देखें ...

http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/20-304.html

अपनी प्रतिक्रिया मंच पर दें तो बेहतर होगा ..आभार

Dorothy ने कहा…

सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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