हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://www.vmanant.com/?m=1

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

धुआं उठना चाहिए ।

छोड़ने को जगत क्यों , हो रहे अधीर हो ।
हाथ खाली है अभी , बनने जा रहे दानबीर हो ।
जो है नही तेरा अभी , कैसे बाँट दोगे और को ।
हाथ में आये बिना , कैसे छोड़ दोगे सार को ।
पहले जानो अर्थ स्वयं , फिर कहो किसी और से ।
छोड़ कर भागो नही , यूँ डर कर किसी और से ।

माना तमस में जी रहे , यह ज्ञात होना चाहिए ।
व्यर्थ में अर्थ का , नही अनर्थ होना चाहिए ।
है उठाना यदि धुआं , तो अंगार होना चाहिए ।
या राख के नीचे दबी , कुछ आग होनी चाहिए ।
और कुछ गीली लकड़ियाँ , जो सुलगती रह सके ।
ना बुझ सके पूरी तरह , ना धधकती रह सके ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

खूबसूरत पंक्तियां हैं, विवेक जी।
शुभकामनायें।

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


क्रिएटिव कामन लाइसेंस
अनंत अपार असीम आकाश by विवेक मिश्र 'अनंत' is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 3.0 Unported License.
Based on a work at vivekmishra001.blogspot.com.
Permissions beyond the scope of this license may be available at http://vivekmishra001.blogspot.com.
Protected by Copyscape Duplicate Content Finder
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...