हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

आवरण बदला तो क्या बदला...

आवरण बदला तो क्या बदला , अंतस बदलना चाहिए ।
दोस्ती सच में किया तो , दिल भी बदलना चाहिए ।
फूलों को चुनना अगर हो , काँटों से भी प्रेम करो ।
कीचड़ अगर भाता नही , तो कमल को छोड़ दो ।
व्यर्थ के आडम्बरों को , छोड़ कर जीवन जियो ।
यदि हकीकत में है जीना , मृत्यु को पहले जियो ।


आवरण बदला तो क्या बदला , अंतस बदलना चाहिए ।
दुश्मनी हमसे किया तो , नफ़रत भी मन में चाहिए ।
क्यों व्यर्थ में सोंचते हो , किस तरह बदला चुकाऊँ ।
सोंच लो करना है क्या , मार्ग खुद बन जायेंगे ।
साज की परवाह करते , हम नही पहले कभी ।
राग यदि जन्मा यहाँ , तो साज भी बन जायेगा ।


आवरण बदला तो क्या बदला , अंतस बदलना चाहिए ।
धार्मिक यदि हो रहे , तुम्हे सत्य भी दिखना चाहिए ।
यदि पहन चोला लिया , सन्यास भी सच में ही लो ।
सन्यास यदि तुमने लिया , चोला भी पहन कर देख लो ।
जब तलक सम्पूर्णता , तुम नही विकसित करोगे ।
जिंदगी की राह पर , बस अर्ध-विच्छिप्त से रहोगे ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Deepak Saini ने कहा…

जिन्दगी जीने का अंदाज सिखाती हुई बेहतरीन कविता

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

मेरे ब्लाग का मोबाइल प्रारूप :-http://vivekmishra001.blogspot.com/?m=1

आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण


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