हे भगवान,

हे भगवान,
इस अनंत अपार असीम आकाश में......!
मुझे मार्गदर्शन दो...
यह जानने का कि, कब थामे रहूँ......?
और कब छोड़ दूँ...,?
और मुझे सही निर्णय लेने की बुद्धि दो,
गरिमा के साथ ।"

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा एवं प्रतिक्रिया हेतु मेरी डायरी के कुछ पन्ने

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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

शब्दों का संसार

प्रिय स्नेही जन
पूर्व में भी एक शब्द बाण व्योम में छोड़ा था,
उसी कमान से ये दूसरा बाण भी निकल रहा है ,
भाव वही पुराना है बस शब्द शक्ति का अंतर है.....
शायद तब जो कहने से छूट गया हो , उसको ये साध सके.........

ध्यान रखो शब्दों का , और उनसे निकलते भावों का ।
जाने कब किस मोड़ पे , वो अर्थ बदल दे बातों का ।
है शब्दों का संसार अनोखा , देते हैं अक्सर ये धोखा ।
ये कभी गिराते दीवारे , तो कभी खीचते लक्ष्मण रेखा ।
हैं कभी महकते फूलों सा , चुभ जाते कभी ये शूलो सा ।
कभी पल में बनते सेतुबंध , कभी हो जाते हैं  खाई सा ।

हर एक शब्द के अर्थ कई , उनसे ज्यादा अनर्थ कई ।
तुम जपो राम का नाम भले , वो समझेंगे है मरे कई ।
सन्दर्भ अगर दे साथ छोड़  ,  तो समझो हुयी प्रलय कहीं ।
कब बात बतंगण  बन जाये , कहो लगता उसमे समय कहीं ।
हाँ मीठे वचन भी औरों के , हैं चुभे तीर के भांति कभी ।
तो मन को दिलासा दे जाये , व्यंग में बोली बात कभी ।

तो सोच समझ कर शब्दों का , जिह्वा से करो प्रयोग सदा ।
यहाँ जहर घुला हवाओं में , कर देती विषाक्त वो बात सदा ।
उस पर यदि शब्द भी तीखे हों , हो ना सकेगी काट कभी ।
बिन छेदे छाती औरों की , वो होगी व्यर्थ ना बात कभी ।
अस्त्र-शस्त्र से लगे घाव , भर जाते हैं उपचारों से ।
शब्द भेद से बने घाव , नहीं मिटते मन के द्वारो से । 
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

तुम जपो राम नाम सदा, वो समझेंगे हैं मरे कई।

बहुत बढ़िया विवेक भाई! मार्के की बात कही है।

आपके पठन-पाठन,परिचर्चा,प्रतिक्रिया हेतु,मेरी डायरी के पन्नो से,प्रस्तुत है- मेरा अनन्त आकाश

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आभार..

मैंने अपनी सोच आपके सामने रख दी.... आपने पढ भी ली,
आभार.. कृपया अपनी प्रतिक्रिया दें,
आप जब तक बतायेंगे नहीं..
मैं कैसे जानूंगा कि... आप क्या सोचते हैं ?
हमें आपकी टिप्पणी से लिखने का हौसला मिलता है।
पर
"तारीफ करें ना केवल, मेरी कमियों पर भी ध्यान दें ।

अगर कहीं कोई भूल दिखे ,संज्ञान में मेरी डाल दें । "

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